आर0 सी0 शर्मा ‘आरसी’ के दोहे
भेज रही भैया तुम्हें, राखी के दो तार।बन्द लिफाफे में किया, दुनिया भर का प्यार।।
भेजी पाती नेह की, शब्द पुष्प के हार।
छोटी बहना कह रही, कर लेना स्वीकार।।
रूठे भैया की करूं, मैं सौ सौ मनुहार।
शायद रूठे इसलिये, आ न सकी इस बार।।
सावन बरसे आंख से, ब्याही कितनी दूर।
बाबुल भी मजबूर थे, मैं भी हूँ मजबूर।।
भैया खत भेजा नहीं, ना कोई संदेश।
लो सावन भी आ गया, बहन बसी परदेस।।
भाई मन में रो रहा, बाबुल भी बेज़ार,
मम्मी की रुकती नहीं, आंखों से जलधार।
मंडराई है मंथरा, फिर रानी के पास।
अब जाने किस राम को, फिर होगा बनवास।।
मेरे सपनों में बसा, ऐसा हिन्दुस्तान।
मस्जिद में हो हरि कथा, मंदिर बंचे कुरान।।
ये कैसा परिदृश्य है, ये कैसा उन्माद।
कभी दिखाए गोधरा, कभी अहमदाबाद।।
दोनों ही इस देश को, ईश्वर का वरदान।
दोनों में अंतर कहां, मीरा या रसखान।।
तुलसी सूरा मौन हैं, आहत हुआ कबीर।
हिंदू मुस्लिम खींचते, भारत माँ के चीर।।
थके थके से अश्व हैं, बोझिल बोझिल पाँव।
लुटा उम्र का कारवाँ, अब साँसों के गाँव।।
साँसों ने जिस दिन किए, अपने बंद किवाड़।
हीरे जैसा तन हुआ, पल में काठ कबाड़।।
नित नूतन आशा लिए, नित नित नूतन वेश।
सांझ ढली सजनी चली, निज प्रीतम के देश।।
श्वांस श्वांस रीते कलश, भर पाया है कौन।
कुआँ कुआँ खामोश है, पनघट पनघट मौन।।
मिथ्या जीवन सब कहें, मिथ्या है हर सांस।
सत्य राम का नाम है, एक उसी की आस।।
जब काँधे दूखन लगें, बोझिल लागें पाँव।
तब यह समझो पास ही, अब साजन का गाँव।।
धागा तक दिखता नहीं, हारे मोती बींध।
अब पलकें मुंदने लगीं, आने को है नींद।।
चेहरे पर चेहरा चढ़ा, तन पर उजले वस्त्र।
राम राम मुख से जपें, और बगल में शस्त्र।।
पावस दोहे रच रहा, धरती गाती गीत।
अब शायद मिल जाएंगे, कबके बिछुड़े मीत।।
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