डॉ. शशि जोशी के दोहे
छेड़ रही है प्यार की, मीठी-मीठी तान।बैठ हवा के पँख पर, खुशबू भरे उड़ान।।
तन के पंछी दूर तक, भरें उड़ानें रोज।
सबके अपने रास्ते, सबकी अपनी खोज।।
कोई भी समझा नहीं, उसके मन की पीर।
आँखों में आकाश था, पैरों में जंजीर।।
पाँवों में भटकन बसी, मन में है संत्रास।
जाने किसकी खोज है, जाने किसकी प्यास।।
दर-दर भटके रात-दिन, घूमे नगरी गाँव।
हमने सुख की खोज में, खूब जलाए पाँव।।
मेरी चुप्पी देखकर, की उसने तकरार।
काश कभी वो झाँकता, खामोशी के पार।।
सुख की छाया में रहें, दु:ख न आये पास।
मौला सबको दे सदा, मुस्काता मधुमास।।
बाट जोहते देर तक, नैना हुए उदास।
उम्मीदों की देहरी, लाँघ गया विश्वास।।
प्यार भरे संसार का, खिला रहे रंग रूप।
सबके आँगन में रहे, सदा गुनगुनी धूप।।
मुझको काबू में करें, डालें दिल पर जाल।
फिर से तेरी ख़्वाहिशें, फिर से तेरे ख्य़ाल।।
चाहे जलती धूप हो, या हो महकी शाम।
सारे मौसम कर दिए, मैंने तेरे नाम।।
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