योगेन्द्र मौदगिल के दोहे
जंतर-मंतर पर खड़े, अन्ना लिए उजास।बाबा इक्यावन भये, राजनीत उनचास।।
भ्रष्ट देश में भ्रष्ट हैं, सारे खासमखास।
ढोंगी कामी मूढ़ खर, नंगे चैनल-दास।।
क्या मेरी क्या आपकी, सब की बात समान।
रोता जब-जब आदमी, हँसता सकल जहान।।
घोटालों को देख कर, होता क्यों हैरान।
भारत-भ्रष्टाचार की, राशी एक समान।।
सच में मोती सीप सम, प्रीत सुखद अनमोल।
पर तन को सांकल लगा, मन की सांकल खोल।।
क्या बतलाएं आपको, अनहोनी का हाल।
चिंतित दुनिया हो रही, मस्ती से कंगाल।।
विज्ञापन युग है लगी, इत-उत शिक्षा सेल।
बिन पोथी बी.ए.करें, अब तो दसवीं फेल।।
आँखों पर चर्बी चढ़ी, भटक गया ईमान।
आँख खोल कर बावले, जग की रख पहचान।।
ऊपर-ऊपर तो चला, रामकथा का दौर।
कामकथा भीतर चली, ना चर्चा ना शोर।।
टूटी-कुचली टहनियां, मसली-मसली घास।
लगता है वनराज ने, पुन: रचाया रास।।
जिनके-जिनके पास था, चोरी का सामान।
वे लम्बे कुरते हुए, सम्मेलन की शान।।
छंद ज्ञान भी हो गया, अपना तो बेकार।
हा-हा, ही-ही का मगर, खूब चला व्यापार।।
तरणताल की योजना, सचमुच आलीशान।
धरती ‘एकवायर’ हुई , रोया बहुत किसान।।
धन के मद में चूर हैं, मंत्री-संत्री-संत।
इसीलिए आतंक का, नहीं दीखता अंत।।
जनता बेचारी मरी, सत्ता बे-अफसोस।
सिद्ध हो गया देख लो, समरथ को नहि दोस।।
फैशन शो चलता रहा, मंत्री जी मद-मस्त।
नंगी टांगों का नशा, बुद्धि करता ध्वस्त।।
नेता गति बखानते, जनता हाहाकार।
मुंबई हाय इत्ती बड़ी, और धमाके चार ?
सत्ता कहती क्या हुआ, हुए अगर विस्फोट।
ये तो दुनिया का चलन, इस में क्या है खोट।।
शेर सभी सोये पड़े, बिदक रहे लंगूर।
सत्ताधारी लोमड़ी, सत्ता-मद में चूर।।
धीरे-धीरे बढ गया, इनका-उनका रोग।
बाबा का हठ-योग तो, सरकारी लठ-योग।।
बूढी आज़ादी इधर, रही मनाती सोग।
और उधर पिटते रहे, हाय निहत्थे लोग।।
दिग्गी भी सठिया गए, चिंतित है सरकार।
राजघाट को कर दिया, सुषमा ने गुलज़ार।।
बुरे वक़्त के सामने, कुंद हुए हथियार।
कांग्रेस को जूता मिला, बाबा को सलवार।।
शासन तो अँधा हुआ, बहरी है सरकार।
बदला अपना वक़्त पर, जनता लेगी यार।।
आम आदमी के लिए, ना दिन है ना रात।
पर बाबा को दीखता, कालाधन दिन-रात।।
बेच-बेच कर योग को, किये करोड़ों पार।
तेरी लीला को लखूं, या देखूं सरकार।।
इधर भी भ्रष्टाचार है, उधर भी भ्रष्टाचार।
तू भी साहूकार है, वो भी साहूकार।।
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