सत्ता के भगवान ने, फिर पी लीनी भंग।।
ओढ़ मुखौटे वाद के, जमा किए हथियार।
निर्दोषों का खून कर, पाते नित्य प्रचार।।
कहलो नक्सलवाद या कहो लाल आतंक।
इस आयातित जीव का, तुरत निकालो डंक।।
कॉफी व्हिस्की चाय पर, चिंतन बहस विचार।
पाँच सितारा सोच से, भरे हुए अखबार।।
कुछ भोले गुमराह जन, मिथ्या पाक प्रचार।
मारकाट हिंसा मचे, चहुँ दिस हाहाकार।।
रोटी-रोजी आबरू, ली दहशत ने लील।
बेबस होकर रो पड़ी, दुखियारी डल झील।।
शैतानों के हाथ में, हथगोले बंदूक।
हर दिन का इतिहास था, जुल्म, गरीबी, भूख।।
बंदूकों के खेल में, लगा न जब कुछ हाथ।
करके पश्चाताप अब, हैं जनता के साथ।।
आशा से पुलकित हुए, केसर कुँज चिनार।
अब बरसों के बाद फिर, आई मुक्त बयार।।
स्वार्थ लोभ निर्लज्जता, वैभव भोग विलास।
सत्ता मद के संग मिल, रचते भ्रष्ट प्रयास।।
रहे सदा से लूटते, जग को अंधा मान।
न्याय तराजू में तुले, अब मुश्किल में जान।।
ऊँट अचम्भे में पड़े, जैसे देख पहाड़।
हर घोटोलेबाज को, वैसी लगे तिहाड़।।
कल थी मन में आस्था, नैतिकता, विश्वास।
आज वहाँ आसीन हैं, स्वार्थ, भोग, विलास।।
खादी कुर्ते हैं वही, बदल गये बस माप।
सत्य अहिंसा न्याय के, भाषण मात्र प्रलाप।।
हों गाँधी, अम्बेदकर, तुलसी या रविदास।
महापुरूष, उनके वचन, बने आज उपहास।।
दगड़ोंं अरु चौपाल से, उठती वहशी चीख।
खून माँगता खून से, अब प्राणों की भीख।।
ओढ़ मुखौटे वाद के, जमा किए हथियार।
निर्दोषों का खून कर, पाते नित्य प्रचार।।
कहलो नक्सलवाद या कहो लाल आतंक।
इस आयातित जीव का, तुरत निकालो डंक।।
कॉफी व्हिस्की चाय पर, चिंतन बहस विचार।
पाँच सितारा सोच से, भरे हुए अखबार।।
कुछ भोले गुमराह जन, मिथ्या पाक प्रचार।
मारकाट हिंसा मचे, चहुँ दिस हाहाकार।।
रोटी-रोजी आबरू, ली दहशत ने लील।
बेबस होकर रो पड़ी, दुखियारी डल झील।।
शैतानों के हाथ में, हथगोले बंदूक।
हर दिन का इतिहास था, जुल्म, गरीबी, भूख।।
बंदूकों के खेल में, लगा न जब कुछ हाथ।
करके पश्चाताप अब, हैं जनता के साथ।।
आशा से पुलकित हुए, केसर कुँज चिनार।
अब बरसों के बाद फिर, आई मुक्त बयार।।
स्वार्थ लोभ निर्लज्जता, वैभव भोग विलास।
सत्ता मद के संग मिल, रचते भ्रष्ट प्रयास।।
रहे सदा से लूटते, जग को अंधा मान।
न्याय तराजू में तुले, अब मुश्किल में जान।।
ऊँट अचम्भे में पड़े, जैसे देख पहाड़।
हर घोटोलेबाज को, वैसी लगे तिहाड़।।
कल थी मन में आस्था, नैतिकता, विश्वास।
आज वहाँ आसीन हैं, स्वार्थ, भोग, विलास।।
खादी कुर्ते हैं वही, बदल गये बस माप।
सत्य अहिंसा न्याय के, भाषण मात्र प्रलाप।।
हों गाँधी, अम्बेदकर, तुलसी या रविदास।
महापुरूष, उनके वचन, बने आज उपहास।।
दगड़ोंं अरु चौपाल से, उठती वहशी चीख।
खून माँगता खून से, अब प्राणों की भीख।।
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