इं0 अम्बरीष श्रीवास्तव के दोहे
चंचल चपला चांदनी, चंद्रप्रभा चहुँओर।चैन चुराये चातकी, चंद्रमुखी चितचोर।।
मनमौजी मन मंजरी, मुक्त मधुर मधुप्रीत।
मर्यादित मधुमास में, मन मोहे मनमीत।।
मधुरिम रस से नभ भरे, वसुधा रहे निहार।
तडि़त संग नभ गर्जना, होवे प्रियतम द्वार।।
सुरभित सावन में सकल, मेघ घटा घनघोर।
रसवन्ती की धार से, हर्षित मन चहुँ ओर।।
वृक्षों को मत काटिए, वृक्ष धरा शृंगार।
हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार।।
नदियाँ सब बेहाल हैं, इन पर भी दें ध्यान।
कचरा निस्तारित करें, बन जाएँ इंसान।।
जैविक खेती है भली, धरती हो आबाद।
गोबर को अपनाइए, बचे रसायन खाद।।
अदरक गमलों में उगे, उगें टमाटर लाल।
छत पर खेती भी करें, जीवन हो खुशहाल।।
कीट नाशकों का ज़हर, वार करे यह गुप्त।
पशु पक्षी बेहाल हैं, आज हुए कुछ लुप्त।।
दूध पिलाते जो हमें, वही बने आहार।
इनसे कैसी दुश्मनी, क्यों होता संहार।।
हो धर्मों में एकता, तोड़ द्वेष के डंक।
मानवता हो विश्व में, दूर रहे आतंक।।
एक संग होती रहे, पूजा और अजान।
सबके दिल में हैं प्रभू, वे ही सबल सुजान।।
झगड़े आखिर क्यों हुए, क्यों होते ये खेल?
मंदिर-मस्जिद मत करो, दिल से कर लो मेल।।
पंथ धर्म मज़हब सभी, लगें बड़े अनमोल।
इनसे ऊपर है वतन, मन की आँखें खोल।।
बहुतेरी साजिश हुई, नहीं गलेगी दाल।
एक रहेगा देश ये, नहीं चलेगी चाल।।
गोचर सारे गुम हुए, नहीं रहे खलिहान।
गोवंशी हैं कट रहे, कहाँ गए इंसान।।
उपजाता है अन्न जो, सो भूखा ही सोय।
लाइन में डंडे मिलें, खाद-बीज को रोय।।
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