सत्यप्रकाश स्वतंत्र के दोहे - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

सत्यप्रकाश स्वतंत्र के दोहे

सत्यप्रकाश स्वतंत्र  के दोहे

प्यार, मुहब्बत, इश्क है, या भौतिक संयोग।
झाई आखर विश्व में, पढ़े चुनिन्दा लोग।।

आज हुश्न को बेच कर, है औरत आजाद।
भूल गई पिछली मगर, वी अपनी मर्याद।।

छोटे से छोटे किये, तूने सब परिधान।
आज नग्रता भी तुझे, लगती है वरदान।।

काली छाया देश पर, छाई आठों याम।
चाहे होटल ताज हो, या फिर अक्षर-धाम।।

छाती छलनी हो गई, अब तो करो हिसाब।
मूँग दलेंगे कब तलक, अफज़ल और कसाब।।

रोजाना जो देश हित, छलकाते हैं जाम।
विश्वासों का कर रहे, प्रतिपल कत्ले आम।।

आजादी हमको मिली, या कोई अभिशाप।
अपने ही अब हो गये, अंग्रेजों के बाप।।

राजनीतिज्ञों ने रचे, कितने सुघड़ उसूल।
जिनको फाँसी चाहिए, वहाँ बरसते फूल।।



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