राम शंकर वर्मा के दोहे  - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

राम शंकर वर्मा के दोहे 

रामशंकर वर्मा  के दोहे 

सागर से भर ले चले, मेघ वारि जंगाल।
उलट दिए नभ श्रृंग से, वसुधा हुई निहाल।।

हरियल-हरियल प्रकृति है, सरस हुए तृन पात।
नवयौवन के भार से, झुके लता तरु गात।।

यूँ तन्वंगी दूब पर, मोती सी जल बूँद।
ज्यों अभिसारी नायिका, मुदित हुई दृग मूँद।।

श्यामल धूसर मेघ को, निरखत हुए विभोर।
झींगुर वीरबहूटियाँ, दादुर चातक मोर।।

वर्षा मंगल पर्व पर, बजे नगाड़े मेघ।
नाचे वर्षा सुंदरी, घर घर मांगे नेग।।

चटक हरित पट ओढ़ी कै, मुदित बाग बन गैल।
कांधे हल माची लिए, चले छबीले बैल।।

खेत लबालब नीर से, बोले मस्त किसान।
चले पलेवा खेत में, रोपेंगे अब धान।।

बागों में झूले पड़े, कजरी आल्हा तान।
ननद भाभियाँ छेड़तीं, पेंग चढ़े असमान।।

मन मलंग तन बांकुरा, हिरदय सिन्धु समान।
जीवन तुम ऐसे बनो, त्याग मोह अभिमान।।

जप-तप, व्रत, पूजन, भजन, तीर्थ करो हज़ार।
पर दुख कातरता बिना, यह जीवन नि:सार।।

इक दिन में सौ बैठकें, फीते कटते रोज।
मंत्री जी देने लगे, शिलान्यास के पोज।।

सडक़ नापते थे कभी, उडऩे लगे विमान।
चहरे पर चश्मा चढ़ा, कौन सके  पहिचान।।

शाहों से तुम कब डरे, कब माना अधिपत्य|
तुम कवि हो निर्भय लिखो, अंधे युग का सत्य||

कैसे लेता भेड़िया चीखों का संज्ञान|
चीखों में ही कीर्तन, सुनते जिसके कान||
 
सभ्य हुए तो सभ्यता, चली पतन की ओर|
आदिम से आदम हुए, अब हम आदमखोर||


 

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