संध्या श्रीवास्तव के दोहे
चक्की-सी है जिंदगी, दुख-सुख दोनों पाट।जैसा भी आये समय, हँस कर उसको काट।।
जो संवेदनहीन हैं, वे ही करते राज।
दीन दुखी, निर्धन तभी, बिलख रहे हैं आज।।
जाने क्या-क्या कह गयी, आँसू की इक बूँद।
सपने जि़ंदा कर गयी, दोनों आँखें मूँद।।
जब मन उलझन में रहे, बिगडे हों हालात।
समय मिले अनुकूल तब, कह दो मन की बात।।
सिंहासन भी हिल उठे, जो बदले हालात।
ऐसी ही हो लेखनी, ऐसे हों जज्बात।।
काले बादल घिर उठे, देखो ये चहुँ ओर।
कोयल कूके डाल पर, मन में उठी हिलोर।।
फिर बचपन तक ले गयी, मनभावन बौछार।
भूले से भूलें नहीं, वो बाबुल का द्वार।।
रिश्ते-नाते भुन गए, जीवन भागमभाग।
मानवता झुलसी पडी, भडक़ी कैसी आग।।
जीवन की हर राह में, पड़े बहुत हैं शूल।
दर्द बिना मिलते नहीं, खुशियों के ये फूल।।
अदब और तहज़ीब के, होते बड़े उसूल।
मैं तो अदना हूँ बहुत, क्षमा करें सब भूल।।
चि_ी लिख-लिख थक गयी, नित्य निहारूँ राह।
पलकें अब पथरा गयीं, उठी देह में दाह।।
नैतिकता दम तोड़ती, सत्य हुआ लाचार।
दुनियाँ में अब झूठ की, होती जय जयकार।।
नारी जीवनशक्ति है, करे न कोई तंग।
कटे न उसकी डोर तो, उड़ती रहे पतंग।।
दुनिया दुर्जन से डरे, देखो इनकी शान।
दया, धर्म, दरियादिली, भूल गया इंसान।।
कुछ धीरज धारण करो, बदलेंगे हालात।
आयेगी नव भोर भी, बीतेगी ये रात।।
दुनिया की इस भीड से, बेचारे हैं दूर।
खुश लेकिन हर हाल में, श्रम साधक मजदूर।।
जीवन के अवरोध से, टूट गयी मैं आज।
रखूँ निराशा को किधर, सुधरे नहीं समाज।।
प्रियतम अब प्यारा लगे, और पिया का गाँव।
तेज धधकती धूप में, सजन घनेरी छाँव।।
माँ की ममता पर कभी, कैसे हो संदेह।
सब बच्चों पर एक सा, बरसाती है नेह।।
मूर्खों का सम्मान ही, होता अक्सर आज।
हालत ये ही देश के, बन बैठे सरताज।।
बल, पौरुष पर तू कभी, करना नहीं गुमान।
देख दशानन का यहीं, चूर हुआ अभिमान।।
ता$कत का जो कर रहे, निर्बल पर उपयोग।
ये है उनकी मूर्खता, और भयानक रोग।।
सावन की काली घटा, छिटक रही चहुँ ओर।
सबके मन की आस ये, वर्षा हो घनघोर।।
कोयल गाये सावनी, फुदकन लगी चकोर।
धरती ने ओढ़ी चुनर, वन में नाचे मोर।।
आया सावन झूम के, मन में उठी हिलोर।
कैसे अब ढूँढूँ उसे, कानन में चितचोर।।
बेटी जीवन प्राण है, निश्चित मगर बिछोह।
उस बिन जीना हो कठिन, इतना मत कर मोह।।
दुनिया रूठी थी कभी, तब हम थे बेचैन।
उन बातों को सोचकर, भीगे अब भी नैन।।
जो मद में रहते मगन, होता उनका नाश।
उनका क्या बस यूँ कहो, चलती फिऱती लाश।।
कौआ कोयल से कहे, ना कर तू अभिमान।
सबकी अपनी टेर है, सबकी अपनी तान।।
मुद्दत से तन्हाइयाँ, खोलें दिल के राज।
यादों के बाज़ार में, हलचल सी है आज।।
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