डॉ.महेश दिवाकर के दोहे - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

डॉ.महेश दिवाकर के दोहे

डॉ.महेश दिवाकर के दोहे 

दर्शन और पुराण में, गुरु की महिमा गान।
परम्परा करती रही, गुरू-पद-अमृत पान।।

गुरुओं ने इस देश की, रखी विश्व में लाज।
युग-युग से इस देश को, है गुरुओं पर नाज।।

गुरुओं ने ही देश को, ऊँचे दिये विचार।
पता नहीं क्यों हो गया, पैदा आज विकार।।

कैसे हों इस देश के, अब सपने साकार।
गुरुओं ने जब देश के, छोड़ दिया आचार।।

संस्कृति औ साहित्य का, सदा भरा थ कोष।
आज गुरू गुम हो गए, रहा न उनमें तोष।।

भूल गये गुरु आज के, त्याग समर्पण प्यार।
इसीलिए तो मिल रही, पग-पग उनको हार।।

अब कागज के फूल से, गुरू-शिष्य सम्बन्ध।
शिक्षा अब तो हो गयी, अर्थ भरा अनुबन्ध।।

राजनीति ने देश का, ऐसा किया विनाश।
फलत: शिक्षा का हुआ, पूरा सत्यानाश।।

शिक्षा के पद बिक रहे, धन की मार अकूत।
राजनीति औ जाति के, मिलते खूब सबूत।।

इधर-उधर चारों तरफ, देख रहा गद्दार।
दुष्ट-भ्रष्ट नेता बड़े, हैं कितने मक्कार।।

किया विधायक निधी से, नेताजी ने दान।
मात-पिता की पुण्यतिथि, जनता का कल्याण।।

कटी-फटी लाशें पड़ी, बिखर गये सब अंग।
पलक झपकते हो गया, हाय  रंग में भंग।।

परिजन सारे रो रहे, क्रंदन चारों ओर।
भय-पीड़ा-आतंक का, मिलता ओर न छोर।।

दोष मढ़ो, गाली बको, और बनो इन्सान।
इस पथ पर जो भी चला, बन जाता शैतान।।


 

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