बेगराज कलवांसिया 'ढूकड़ा' के दोहे
जिस दिन राजा भोज का, गंगू तेली मीत।उस दिन होगी देश में, मानवता की जीत।।
दुनिया अक्सर देखती, होठों की मुस्कान।
अंतर्मन के दर्द को, कौन सका पहचान।।
दिन दिन बढ़ती जा रही, जीवन की रफ़्तार।
दर्द सुबह का शाम को, हो जाता है पार।।
तन पर खादी कीमती, नेता सफा सफेद।
नीयत में नित नीचता, दिल में काले छेद।।
गुंडे चोर चुनाव में, ठोक रहे हैं ताल।
क्या होगा इस देश का, उठते कई सवाल।।
सूरत सीरत से सभी, अलग-अलग तस्वीर।
हर मानव होता नहीं, साधू संत फकीर।।
बाबाओं की गोद में, बैठोगे जब आप।
मर्जी से लेंगे तभी, तन मन का वो नाप।।
आधी दुनिया एक दिन, दुर्गा का अवतार ।
शेष समय फिर से वही, शोषण अत्याचार।।
बोझ नहीं हैं बेटियाँ, समझो सब ये बात।
इनकी सब रक्षा करें, बढऩे दें अनुपात।।
तोड़ो अब सब रूढिय़ाँ, बेटी नहीं अछूत।
पढ़ा लिखाकर कीजिये, इनके कर मजबूत।।
बेटा बेटी एक से, दोनों एक समान।
आओ करना सीख लें, दोनों पर अभिमान।।
बेटों से बेटी भली, घर आँगन की शान।
मात-पिता का हर घड़ी, रखती हैं वो ध्यान।।
बेटी करती बाप से, पढऩे की फरियाद।
शादी बचपन की मुझे, कर देगी बरबाद।।
निर्मल निश्छल बेटियाँ, जब तक हैं लाचार।
तुलसी पूजन का भला, क्या होगा तब सार।
शर्म हया नंगी हुई, नग्न हुई सरकार।
बेटी एक गरीब की, गई मौत से हार।।
बेटी बोली कोख से, मेरी सुनो पुकार।
मत छीनो मुझ से भला, जीने का अधिकार।।
बेटी को तालीम दो, भरने दो परवाज़।
उडऩे दो आकाश में, बनने दो सरताज।।
नारी सागर प्रेम का, करुणा का भंडार।
नर की निर्मल प्रेरणा, जीवन का आधार।।
नारी को मंजिल मिले, मिले पंख परवाज़।
पूर्ण आजादी मिले, दबे नहीं आवाज़।।
समझो दर्द किसान का, जानो सब हालात।
सरदी-गरमी में खड़ा, जूझ रहा दिन-रात।।
लेकर नाम किसान का, करते हैं जो शोर।
उनका मतलब और है, मकसद है कुछ और।।
खेती घाटे की हुई, किश्मत हुई खिलाफ।
कितना करे किसान का, कर्जा कोई माफ़।।
श्रम दिवस की सार्थकता, होगी तब साकार।
न्याय मिले मजदूर को, और सभी अधिकार।।
सैनिक अपनी शान हैं, इन पर सबको नाज़।
निश्चित हो हम सो रहे, इनके दम पर आज।।
सुरा सुंदरी शाम को, जिसके घर की शान।
उस नेता को क्या पता, सैनिक का बलिदान।।
देकर जीवन कीमती, अमर कर गए नाम।
नमन शहीदों को करें, शहादत को प्रणाम।।
राजनीति गंदी हुई, जुल्म करे मारीच।
जन हत्या के पाप से, नहीं बचेंगे नीच।।
नागनाथ को छोडक़र, सांपनाथ के संग।
राजनीति में आम हैं, अवसरवादी रंग।।
राजनीति में कौन क्या, इसके नहीं सबूत।
बेटा कहता बाप से, मैं तुझ से मजबूत।।
कितने मैले हो गए, राजनीति के रंग।
घर घर में ही छिड़ गई, सुख सत्ता की जंग।।
इकलौता बेटा गया, सात समंदर पार।
आँसू अटके आँख में, दिल रोया बेज़ार।।
बेटा गया विदेश में, सात समन्दर पार।
घर में बूढ़े बाप से, उतरे नहीं उधार।।
वजह मौत की बन गया, हद से ज्यादा प्यार।
हत्या करके बाप की, बेटा हुआ फरार।।
यादें आई गाँव की, उमड़ा दिल में प्यार।
आना मुश्किल हो गया, मुझसे फिर इस बार।।
हवा विषैली चल पड़ी, फैला नफरत रोग।
बिन माचिस जलने लगे, अच्छे-खासे लोग।।
साल कई आए गए, हुआ कौन खुशहाल।
होरी धनिया आज भी, बैठे हैं बदहाल।।
बेशक निर्धनता रही, दिल से रहा अमीर।
इज्जत से जीता रहा, खोया नहीं जमीर।।
कोई कोशिश की नहीं, कैसे जुड़ते छोर।
टूटे धागे प्रेम के, बिखर गए चहुँ ओर।।
सूरज डूबा आस का, हुई अँधेरी रात।
थककर भूखी सो गई, यादों की बारात।।
पिता पेड़ की छाँव हैं, माँ ममता की बेल।
किस्मत वालों को मिले, जीवन भर ये मेल।।
सच का सूरज हो गया, धरती से नाराज़।
जगह-जगह अब झूठ के,अंधकार का राज।।
जिसकी जलती झोंपड़ी, जिस तन लगती आग।
वही जानता खौफ का, असली तांडव राग।।
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