शुभम् श्रीवास्तव ओम के दोहे - दोहा कोश

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रविवार, 15 जनवरी 2023

शुभम् श्रीवास्तव ओम के दोहे

शुभम् श्रीवास्तव ओम के दोहे

बोधि वृक्ष ले हाथ में, घूम रहे दरवेश।
अंजुलि भर माटी मिले, बच जाये परिवेश।। 

सूरज को बहला रही, बची-खुची मुस्कान।
इतनी ज़्यादा उम्र पर, हावी हुई थकान।।

भ्रष्टाचारी नीति पर, कैसे कसे नकेल।
या लम्बी लाइन लगी, या फिर सर्वर फ़ेल।।

गर्म हवा के हाथ में, थे यद्यपि हथियार।
मौसम ने फिर भी रचा, काग़ज़ का संसार।।

क्षण भर की संवेदना, क्षण भर का प्रारूप।
अक्षर-अक्षर बर्फ के, पढ़ने आयी धूप।।

लिखने में जल-पृष्ठ पर, होता वही समर्थ।
जो आँसू के रंग का, बूझ चुका हो अर्थ।।

हल्की दुधिया रोशनी, कच्चे मन के ख़्वाब।
आँगन आँख तरेरता, मिलते नहीं जवाब।।

नीदों की गहराईयाँ, सपनों के उतराव।
आँखें चुप हो झेलती, चेहरों के बर्ताव।।

धीरे-धीरे फिर हुआ, बचपन का आगाज।
लगीं चिढ़ाने सीढ़ियाँ, फिर घुटनों को आज।।

जीत उजाले की हुई, हार गया फिर स्याह।
बिटिया ने घर में रचा, फिर गुड़िया का ब्याह।।

दो पर्दों की आड़ में, छोटा-सा परिवेश।
आओ दो पल को जिएँ, बंजारों का देश।।

दरी बिछाना-मोड़ना, सब कुछ बेबुनियाद।
उठे हाथ लिखकर गये, मुट्ठी भर उन्माद।।

जब भी चिड़ियों में जगी, आसमान की चाह।
लगी हवा में तैरने, फिर कोई अफ़वाह।।




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