डॉ.बैरिस्टर सिंह यादव के दोहे
कुर्सी की लिप्सा प्रबल, बेच दिया ईमान।
पैसा ही भगवान है, रात दिवस है ध्यान।।
गुरुजन बहुत उदास हैं, गुरुता गिरी निढ़ाल।
जो जितना धनवान है, उतना गुरु घंटाल।।
धर्म निभाना अति कठिन, जग धूर्तों की हाट।
सज्जन को जग नर्क है, दुर्जन सोने खाट।।
चंचल मन अति दुष्ट है, भक्ती करन न देत।
सदाचार बाधा करे, दुराचार गहि लेत।।
दुष्टा पत्नि सखा शठ, चाकर वातुल होय।
सर्प वास घर में करे, निश्चय विनसे सोय।।
आँख कान सब बन्दर है, लूट मची चहुँ ओर।
आह करो दुखड़ा कहो, जीभ काटते चोर।।
दीन धर्म ईमान कुछ, रहा न नर के पास।
पैसे के पीछे भगे, किस विधि आए पास।।
अनसूया अरु पद्मिनी, सावित्री का देश।
लक्ष्मीबाई के यहाँ, पश्चिम संस्कृति वेश।।
गुरुजन बहुत उदास हैं, गुरुता गिरी निढ़ाल।
जो जितना धनवान है, उतना गुरु घंटाल।।
धर्म निभाना अति कठिन, जग धूर्तों की हाट।
सज्जन को जग नर्क है, दुर्जन सोने खाट।।
चंचल मन अति दुष्ट है, भक्ती करन न देत।
सदाचार बाधा करे, दुराचार गहि लेत।।
दुष्टा पत्नि सखा शठ, चाकर वातुल होय।
सर्प वास घर में करे, निश्चय विनसे सोय।।
आँख कान सब बन्दर है, लूट मची चहुँ ओर।
आह करो दुखड़ा कहो, जीभ काटते चोर।।
दीन धर्म ईमान कुछ, रहा न नर के पास।
पैसे के पीछे भगे, किस विधि आए पास।।
अनसूया अरु पद्मिनी, सावित्री का देश।
लक्ष्मीबाई के यहाँ, पश्चिम संस्कृति वेश।।
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