सुशीला शिवराण के दोहे
तहज़ीबों का मुल्क है, अपना हिंदुस्तान।गूँजे पावन आरती, ले कर साथ अजान॥
जाने किस से हो गई, एक ज़रा सी चूक।
झाँझरिया भी रो पड़ी, उठी जिया में हूक।।
सोचा था आकाश में, ऊँची भरे उड़ान।
झपट लिया फिर बाज ने, चिडिय़ा लहूलुहान॥
सदियों से ही मथ रही, औरत को यह पीर।
अग्निपरीक्षा ली कभी, हरण हुआ है चीर॥
पंछी बेघर हो गया, ले अंतस में पीड़।
शजर रहा खामोश क्यूँ, देख उजड़ता नीड़।।
उजड़ा पनघट गाँव का, उजड़े सरवर-घाट।
मॉल उठाए सर खड़े, कहाँ गए वो हाट॥
गिरगिट भी हैरान हैं, बदले कितने रंग।
देख ज़हर इंसान का, विषधर भी हैं दंग।।
जिसकी छाया में पली, पा कर शीत बयार ।
उस ही तरु को खा गई, दीमक खरपतवार॥
दुनिया में आई नहीं, किया नहीं कुछ पाप।
फिर क्यों मुझको कोख में, मार रहे माँ-बाप॥
आँसू नित झरते रहें, बैन न देते साथ ।
पिया कहाँ समझे कभी, मेरे मन की बात॥
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