पं.हरिओम तरंग के दोहे
भारत का फिर से करो, मित्रो जिर्णोद्धार।वैभव शाली देश था, आज हुआ लाचार।।
चंद आदमी बन गए, सौ करोड़ पर भार।
भ्रष्टाचारी की करो, जूते से मनुवार।।
आज पुराने आदमी, करे जमाना याद।
महँगाई ज्यादा बढ़ी, आजादी के बाद।।
चोरों के दरबार में, सभी तरह के चोर।
सभी लूट के खा रहे, देश हुआ कमजोर।।
चरखा टूटा है पड़ा, कौन कातता सूत?
पॉलिस्टर कपड़ा चला, खादी हुई अछूत।।
तरंग हम डालें नहीं, कभी रंग में भंग।
सबके हित को साधकर, बिखरायें नव रंग।।
स्वर्ग नहीं आकाश में, स्वर्ग नहीं पाताल।
स्वर्ग धरा पर देख ले, रह प्रसन्न हर हाल।।
रक्त दान कोई करे, कोई आँखें दान।
देहदान भी कर रहा, यहाँ भला इन्सान।।
पर्यावरण सुधार में, जीवन दीजे होम।
पावन कर जल-वायु को, बचा लीजिए कोम।।
भूखा धर्म न देखता, भूख कराती पाप।
भूखे की व्यथा तरंग, क्या समझेंगे आप।।
निराकार जग में खुदा, अभी तलक मह$फूज।
गर होता आकार तो, हो जाता वो फ्यूज।।
दुनिया आगे बढ़ गई, पीछे हिन्दुस्तान।
अभी तलक इस देश की, ढीले हाथ कमान।।
आँख खोलकर देखिए, वर्तमान का हाल।
भूत-भविष्य ना याद कर, भूल सभी जंजाल।।
इक पलड़े में खून है, दूजे में कानून।
तगड़ा अगर वकील है, माफ उसे हर खून।।
बिच्छू से मैं बच गया, मिला मित्र का डंक।
मेरे अपने लोग ही, मचा रहे आतंक।।
साधु यहाँ पर कौन है, कौन यहाँ शैतान।
वाणी बतलाती हमें, कौन श्रेष्ठ इन्सान।।
हिन्दी से बढक़र नहीं, कोई और जुबान।
भारत में सबसे अधिक, इस भाषा का मान।।
ढाई आखर प्रेम का, समझा गये कबीर।
लोग अभी समझे नहीं, प्रेमी दिलकी पीर।।
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