डॉ.मनोहर अभय के दोहे
उजले से कपड़े टंगे, मैलखोर रंगीन।
उलट-पलट देखे जहाँ, मिले दाग संगीन।।
खुली हवेली आपकी, मेरा तंग मकान।
उसमें भी धरते रहे, अपने कूड़ेदान।।
मेरे झुलसे पाँव हैं, जलती रेत अथाह।
कीचड़ में औंधे धँसे, तुम दिखलाते राह।।
उनके हित मैं क्या लिखूँ, जिनके हित बंधेज।
बंधुआ खूँटे से बंधे, ज्यों डंगर निस्तेज।।
ऊँचे गुम्बद पहुँच कर, तोड़ दिए सोपान।
मौनव्रती कैसे कहो, खाली हुए खदान।।
बंगलों पर बंगले बने, बहुरंगी बहुरूप।
बनते-बनते ले गये, मुझ गरीब की धूप।।
नटवर तुम देखा किये, नटनी कर गई खेल।
नट बाँटेंगे रेवड़ी, हुआ जमूड़ा फेल।।
नौ दिन नाची राधिका, नौ मन जारा तेल।
नौ-नौ दीने नौलखा, मिली जेल पै बेल।।
गमलों में ऋतुराज है, बगिया में पतझार।
तुतली तितली तड़पती, होगा क्या इस बार।।
अलग शहर की जिन्दगी, लपक-झपक अलगाव।
उलटे लौटे गाँव जो, ठंडे मिले अलाव।।
दस मंजिल का टावरा, खर्चें लाख करोड़।
दस प्राणी दस फीट में, सिमटें पाव सिकोड़।।
घोड़ा लीना दौडक़र, छुटभैय्यों ने थाम।
बड़े कुँवर तकते रहे, टूटी थाम लगाम।।
घास-फूस का झौपड़ा, बाहर कीचड़ ताल।
माखी, माछर, डांगरे, भीतर बाल गुपाल।।
सुनो मुनादी पिट रही, रखना बंद जुबान।
बोलेंगे तब रात-दिन, चाकर चारण श्वान।।
इनके चूल्हे देखिये, तीन ईंट के ढेर।
अधकचरी रोटी पकें, जब-तब देर सवेर।।
बदले तेवर धूप के, सूरज है नाराज।
हवा डंक-सा मारती, मौसम गरम मिजाज।।
दहशत के बाजार में, बड़े-बड़े बिकवाल।
हम साया हमराज हैं, मातिल औ कुतवाल।।
बंद तमाशे कीजिये, मजमे मुजरे स्वांग।
धधक रही है भीड़ में, इंकलाब की मांग।।
उलट-पलट देखे जहाँ, मिले दाग संगीन।।
खुली हवेली आपकी, मेरा तंग मकान।
उसमें भी धरते रहे, अपने कूड़ेदान।।
मेरे झुलसे पाँव हैं, जलती रेत अथाह।
कीचड़ में औंधे धँसे, तुम दिखलाते राह।।
उनके हित मैं क्या लिखूँ, जिनके हित बंधेज।
बंधुआ खूँटे से बंधे, ज्यों डंगर निस्तेज।।
ऊँचे गुम्बद पहुँच कर, तोड़ दिए सोपान।
मौनव्रती कैसे कहो, खाली हुए खदान।।
बंगलों पर बंगले बने, बहुरंगी बहुरूप।
बनते-बनते ले गये, मुझ गरीब की धूप।।
नटवर तुम देखा किये, नटनी कर गई खेल।
नट बाँटेंगे रेवड़ी, हुआ जमूड़ा फेल।।
नौ दिन नाची राधिका, नौ मन जारा तेल।
नौ-नौ दीने नौलखा, मिली जेल पै बेल।।
गमलों में ऋतुराज है, बगिया में पतझार।
तुतली तितली तड़पती, होगा क्या इस बार।।
अलग शहर की जिन्दगी, लपक-झपक अलगाव।
उलटे लौटे गाँव जो, ठंडे मिले अलाव।।
दस मंजिल का टावरा, खर्चें लाख करोड़।
दस प्राणी दस फीट में, सिमटें पाव सिकोड़।।
घोड़ा लीना दौडक़र, छुटभैय्यों ने थाम।
बड़े कुँवर तकते रहे, टूटी थाम लगाम।।
घास-फूस का झौपड़ा, बाहर कीचड़ ताल।
माखी, माछर, डांगरे, भीतर बाल गुपाल।।
सुनो मुनादी पिट रही, रखना बंद जुबान।
बोलेंगे तब रात-दिन, चाकर चारण श्वान।।
इनके चूल्हे देखिये, तीन ईंट के ढेर।
अधकचरी रोटी पकें, जब-तब देर सवेर।।
बदले तेवर धूप के, सूरज है नाराज।
हवा डंक-सा मारती, मौसम गरम मिजाज।।
दहशत के बाजार में, बड़े-बड़े बिकवाल।
हम साया हमराज हैं, मातिल औ कुतवाल।।
बंद तमाशे कीजिये, मजमे मुजरे स्वांग।
धधक रही है भीड़ में, इंकलाब की मांग।।
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