डॉ.गोपाल 'राजगोपाल' के दोहे  - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

डॉ.गोपाल 'राजगोपाल' के दोहे 

डॉ.गोपाल 'राजगोपाल' के दोहे 

मिर्ज़ा गालिब कह गये, कह कर गये कबीर।
दो मिसरों में दर्द को, दो पंक्ति में पीर।।

भारत का मानक समय, चलता अक्सर लेट।
मुख्य अतिथि देर से, आते घंटा नेट।।

इक पल की भी शत्रुता, मत कर मुझसे मीत।
भरने में इक घाव के, सदियाँ जाती बीत।।

आत्म-प्रशंसा में कई, हो जाते मशगूल।
पाकर थोड़ी सी नमी, लकड़ी जाती फूल।।

सदियाँ लांघी वक्त की, रहा मगर अफसोस।
इन्सानों के बीच की, दूरी लाखों कोस।।

देते थे हर बात पर, बापू ताना मार।
मेरे ही हक में रहा, उनका ये व्यवहार।।

चिमटा ही लेगा सदा, मेले में हामीद।
ना अपनों का दर्द हो, तो फिर कैसी ईद।।

क्यों $कातिल की खोज में, दुबले होते आप।
कर ली होगी खुदकुशी, मैंने ही चुपचाप।।

नहीं सूझती है सज़ा, मुन्सिफ को माकूल।
कभी कभी इक शख्स ही, कातिल औ’ मकतूल।।

देखा वायुयान से, जब-जब भरी उड़ान।
लगते हैं पर हैं नहीं, इन्सां कीट समान।।

आदम और हथियार में, खूब बढ़ी तकरार।
मुन्सिफ गहरी सोच में, किसकी गहरी मार।।




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