प्रियंका पांडे के दोहे
हँसती चंचंल रश्मियाँ, ले आईं नव भोर।जाग रहे अब फूल तो, पंछी करते शोर।।
बिखरी प्यारी रोशनी, पंछी गाते गीत।
अधरों पर मुस्कान है, साँसों में संगीत।।
कुहरे में चमकी किरन, क्षितिज हो गया लाल।
सूरज दादा आ रहे, ओढ़ रेशमी शाल।।
गायेंं सब चरने लगीं, पग से उड़ती धूल।
आसमान के भाल पर, सजता अक्षत फूल।।
जोत कलश लेकर चली, लाई नवल प्रभात।
आकर ऊषा सुंदरी, दे जाती सौगात।।
कडवी वाणी बोलते, उगलें मुख से आग।
मानुष का बस तन धरा, उनसे मीठे काग।।
जिन हाथों में खेल के, जानी जग की रीत।
उनसे संध्या काल में, कम मत करना प्रीत।।
जिन हाथों के पालने, थके नहीं दिन रैन।
वो ही ढलती आयु में, खोजें मीठे बैन।।
निशा चंद्र का हो मिलन, तारें दें सौगात।
पुलकित होती चांदनी, झिलमिल करती रात।
झिलमिल करते दीप ज्यों, मोती जड़े हजार।
तारों की यह रोशनी, कुदरत का शृंगार।।
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