ताराचन्द ‘नादान’ के दोहे
कमरे में छोड़ा नही, कोई रोशनदान।देख तभी मुरझा गया, भावों का गुलदान।।
पलट गयी सब रीत हैं, बदल गया है दौर।
चन्दा खोजे दूर से, बैठा कहाँ चकोर।।
हम देखेंगे जि़न्दगी, कल का तेरा रूप।
देती ठंडी छाँव है, या फिर जलती धूप।।
हमने पिछले दौर में, देखी थी वो प्रीत।
दिल गाता है आज भी, गंगा जमुनी गीत।।
ढल जायेगी, सोच मत, रात भले घनघोर।
ताक रही है रास्ता, एक सुहानी भोर।।
बात करी थी देर तक, यादों से कल रात।
बिन सावन के आज भी, खूब हुई बरसात।।
तज चिन्ता, रख आसरा, नाव लगेगी पार।
आशाओं की नींव पर, जीवन की मीनार।।
सूख गया है आँख में, अब तो सारा नीर।
पलकें भूली बैठना, चुभे पीर का तीर।।
कान्हा की वंशी बजी, राधा हुई विभोर।
प्रेम दीप की रोशनी, फैली चारों ओर।।
माँ ममता की मूर्ति, सींचे देकर प्यार।
और पिता जी दें हमें, सद आचार विचार।।
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