अशोक ‘आनन’ के दोहे
ओढ़ रजाई धुंध की, रख सिरहाने हाथ।सर्द रात अखबार पर, लेटी है फुटपाथ।।
बाँच रही है धुंध का, सुबह लेट अखबार।
रात ठंड से मर गए, दीन-हीन लाचार।।
एक दीप तुम प्यार का, रखना दिल के द्वार।
यही दीप का अर्थ है, यही पर्व का सार।।
झाँके घूँघट ओट से, हौले से कचनार।
भँवरे करते प्यार से, चुम्बन की बौछार।।
खुशियों के खत बाँटता, आया पावस द्वार।
मुझे विरह की दे गया, पाती अबकी बार।।
जादू-टोना कर गई, सावन की बौछार।
काजल भी नज़रा गया, साजन अबकी बार।।
मुझको पावस दे गया, आँसू की सौगात।
सजकर निकली आँख से, बूँदों की बारात।।
बस्ती-बस्ती खौफ है, घर-घर आदमखोर।
जान बचाकर आदमी, अब जाए किस ओर।।
बंद मिलीं ये खिड़कियाँ, बंद मिले सब द्वार।
अब तो सारा शहर है, दहशत से बीमार।।
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