ज्योतिर्मयी पंत के दोहे
संस्कारों की नींव हो, अडिग रहे परिवार।आपस में बाँटें सभी, खुशियों का उपहार।।
बच्चे ही परिवार के, होते सुखद भविष्य।
कोरे कागज़ से सदा, प्रति छवि होते दृश्य।।
जीव जंतु भी सीख दें, पुण्य कर्म उपकार।
मधु मक्खी संचित करे, मधु देती उपहार।।
पञ्च तत्व हैं सृष्टि के, जीव जंतु आधार।
एक नियंता है यहाँ, सबका पालन हार।।
बेटा-बेटी को सदा, मिले प्यार सम्मान।
पालन-पोषण एक सा, हो न कभी अपमान।।
माँ सम जग को पालती, सब कुछ देती वार।
उस धरती का ऋ ण कभी, सकते नहीं उतार।।
अपने सुख सब भूलते, संतति हित माँ-बाप।
आशा केवल प्यार की, वर्ना हिय संताप।।
इक दूजे को दोष दें, करते तर्क-कुतर्क।
समाधान मिलते नहीं, कहीं न पड़ता फर्क़।।
दूजों के दुख देख के, जो रह जाते मौन।
कष्ट सताएँ जब उन्हें, साथ निभाए कौन?
मुरझाने के बाद भी, बाँटें पुष्प सुगंध।
ऐसी यादें रह सकें, अपनों के हृद बंध।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें