डॉ. प्रदीप शुक्ल के दोहे  - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

डॉ. प्रदीप शुक्ल के दोहे 

डॉ. प्रदीप शुक्ल के दोहे 

सत्य हमेशा जीतता, झूठे की हो हार।
झूठा करने को इसे, लगा हुआ संसार।।

कुछ लोगों के पास हैं, चहरे भी दो चार।
चढ़ा लिया चेहरा नया, बदली जो सरकार।।

हवा विषैली हो रही, जहरीली है घास।
खुद अपने ही मूल्य पर, हम कर रहे विकास।।

फिर चिल्लाती द्रोपदी, कौरव बदलें नाम।
भेष बदल कर ही सही, आ जाओ घनश्याम।।

सूरज दिन भर दहकता, अंगारे सी शाम।
लुकाछिपी अब छोड़ कर, आ जाओ घन श्याम

अच्छाई इंसान की, हर लेता है दम्भ।
उन्नति का प्रस्थान हो, अवनति का आरम्भ।।

गर्वित अपने आप पर, था चढ़ कर सोपान।
मुझको नीचे ले गया, बस मेरा अभिमान।।

जीवन भर चलता रहे, धूप छाँव का खेल।
नागफनी मिलती कभी, कभी घनेरी बेल।।

जीवन में खुशियाँ मिलें, कभी अखरते शूल।
चलती जाए जि़ंदगी, बीती बातें भूल।।

गर्मी से बेहाल हैं, अब बस तेरी आस।
तू आये तो खिल उठे, चेहरा पड़ा उदास।।


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