नगेन्द्र फौजदार के दोहे
अविरल बढऩा सीख ले, मुश्किल होंगी ढेर।प्राप्त करेगा लक्ष्य को, होगी देर-सवेर।।
लख कर दशा समाज की, रहा न जाये मौन।
अब मैं भी गर चुप रहा, तो बोलेगा कौन?
बिगड़े सब हालात हैं, बिखरे सब जज्बात।
हैं खुद जिम्मेवार हम, मानो पक्की बात।।
वर्तमान की माँग है, करदो यौवन त्याग।
अर्जुन शर-संधान कर, बरसा दो अब आग।।
पहले अपना ही करो, आलोचन त्रुटिहीन।
तभी समीक्षा ओर की, करना खूब महीन।।
सरकारी वाहन बने, यम के पहरेदार।
जाने किस पल कौन बम, जाये हमको मार।।
अधिकारों के साथ जो, ध्याते निज कत्र्तव्य।
बनते उनके कर्म तब, निश्चय ही द्रष्टव्य।।
अवसर के अनुकूल जो, करे क्रिया तत्काल।
हुआ सदा ही जगत में, ऊँचा उसका भाल।।
पढ़-लिख कर जो ना किया, निज मन का उत्थान।
भले-बुरे का फिर तुम्हें, कैसे होगा भान।।
मानव मन पर स्वमन से, भारी हुआ मनोज।
बचपन से निकले नहीं, आये निकल तनोज।।
माँ तो है अवतार ज्यों, ईशर का प्रतिरूप।
नमन करो दिन-रात सब, हो सेवक या भूप।।
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