होशियार सिंह ‘शंबर’ के दोहे
निर्दोषों की खोपड़ी, रहे कसाई तोड़।क्रमिक योग कितना हुआ, रहे आँकड़े जोड़।।
दोहा छंद सुहावना, गाये लय अरु ताल।
गाया जो सकता नहीं, उठता वहीं सवाल।।
पत्नी की बातें सुनी, तुलसी त्यागी गेह।
तपकर रामायण लिखी, जगत सिखायी नेह।।
बोये बीज गुलाब के, उगे कैक्टस देश।
उठो उखाड़ो मूल को, यह कवि का संदेश।।
हरिजन वह जो हरि भजे, हरिजन के हैं राम।
माँ के वर आशीष से, मैं तो राम गुलाम।।
तीरथ सुख की कल्पना, पूरे हो सब काम।
मात-पिता, गुरु देवता, चारों तीरथ धाम।।
गीत, $गज़ल अरु दोहरे, लोकगीत अरु छंद।
कविता रचना में सदा, है स्वॢगक आनन्द।।
अर्पित जीवन कर दिया, जग पूरा विश्वास।
खोजे भी दुर्लभ रहे, ऐसे रत्न सुभाष।।
खड्डी पर कपड़ा बुने, कपड़ा नहीं शरीर।
रामदास बीजक गढ़े, गाते रहे कबीर।।
शब्द साधना से सजें, देते अर्थ सटीक।
चरण तोड़ मत फेंकिये, नहीं पान की पीक।।
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